Friday, March 26, 2010

परिवर्तन

मैं अपनी वार्डेन के साथ - 26 मार्च 2002



दिनाँक - 26 मार्च !!

अगर 4 दिसंबर के बाद मेरी ज़िंदगी का कोई महत्वपूर्ण दिन है तो वह आज ही का दिन है ! आज से ठीक आठ वर्ष पूर्व, आज ही के दिन 26 मार्च 2002 को मेरी ज़िंदगी का एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ था | आज ही के दिन मेरा दाखिला देहरादून के एक हॉस्टल "कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल " में हुआ था | कुछ लोगों ने कहा कि अभी मैं हॉस्टल जाने के लिए काफी छोटा हूँ !! ( इसलिए नहीं क्योंकि मैं पाँचवीं कक्षा में था, बल्कि इसलिए क्योंकि मेरा वजन मात्र पच्चीस किलो और लम्बाई 131 से.मी. थी !! ) परन्तु मैं तैयार था | अपनी नयी ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए – एक आत्मनिर्भर ज़िंदगी |

जिस दिन मैं वहाँ गया – वो एक अजीब सा अनुभव था | मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं 'खुश होऊं या दुखी' ?? करीब 50 बच्चों के साथ एक ही डोम में सोना, रहना, नहाना-धोना, निःसंदेह मरे लिए एक नया एवं रोमांचक अनुभव था | मेरे इर्द-गिर्द सभी लोग आपस में अंग्रेज़ी में बातें कर रहे थे किन्तु मुझे ढंग से अंग्रेजी नहीं बोलनी आती थी, इसलिए मैं उनसे थोड़ा दूर ही रहा | जब मैं पहली बार मेस में लंच करने गया तो मुझसे कुछ खाया ही नहीं जा रहा था | रोटी इतनी मोटी थी कि घर की पाँच रोटियों बराबर !! उसे तोड़ते वक्त ही मुझे उसे न चबा पाने का एहसास हो रहा था | परन्तु कड़े अनुशासन के कारण न खाने का तो सवाल ही नहीं था | मगर एक निवाला खाते ही वही हुआ जिसका मुझे डर था – मैंने टेबल पर ही उल्टी कर दी !! ओह !! स्कूल में पहले ही दिन, मैंने ये क्या कर दिया ?? नया होने के कारण मैं डाँट खाने से तो बच गया पर मुझे इस वाकये पर काफी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी | शाम को खेल के पीरियड में हमें बास्केटबॉल खेलने भेजा गया | लेकिन क्योंकि मैंने पहली बार बास्केटबॉल कोर्ट में कदम रखा था इसलिए यहाँ भी मैं कुछ भी करने में अक्षम रहा | सुबह के शानदार लंच के बाद मुझे ही पता है कि मैंने रात्रिभोज को कैसे अपने पेट में पहुँचाया (सुबह कुछ न खाने के कारण मुझे डिनर में डबल डोज़ लेनी पड़ी थी !!)
रात को सोते समय मैं यही सोच रहा था कि मैं यहाँ पाँच साल कैसे काट पाऊंगा ???

पर ये पाँच साल एक स्वप्न की तरह इतनी जल्दी कट गए कि पता ही नहीं चला |

ठीक पाँच वर्ष पश्चात् उसी दिन - 26 मार्च 2007 को, उस स्कूल में मेरी आखिरी बोर्ड परीक्षा थी – जीव विज्ञान की | आज मैं इस स्कूल को छोड़ने वाला था | पर अब यह स्कूल मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था | यहाँ पर बनाए सभी अभिन्न मित्रों से अलग होने का एहसास मन को दुखी कर रहा था | इन पाँच सालों में मुझे इतना कुछ सीखने को मिला | इंग्लिश और हिंदी डिबेट, एलोक्युशन, निबंध लेखन, क्विज़, आर्ट एण्ड क्राफ्ट, ड्रामा, सभी खेल – क्या नहीं सीखा था मैंने यहाँ आकर ?? (वैसे डांस नहीं सीखा :P) | इन पाँच वर्षों में मैं काफी बदल गया था | अब मुझे मेस का खाना खाने की आदत सी हो चुकी थी | अब और लोगों की तरह मैं भी बिना किसी रुकावट के अंग्रेज़ी बोल सकता था | अब मैं बास्केटबॉल ही नहीं हॉकी, फुटबॉल, लॉन टेनिस इत्यादि खेल भी खेल सकता था | इन पाँच सालों में मैंने इतना सीख लिया था कि मैं एक नए शहर (कोटा) में आराम से रह सकता था | शायद मैं बड़ा हो गया था ( वैसे तो मैं अभी भी मात्र 40 कि.ग्रा. वजन और 152 से.मी. कद का था ) !!
पर अब मैं आत्मनिर्भर हो गया था | अगर कुछ पहले दिन जैसा था तो वही एहसास – आज भी मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं 'खुश होऊं या दुखी' ??


मैं अपने दोस्तों के साथ - 26 मार्च 2007

Sunday, March 14, 2010



अपोजी खत्म होने के बाद कैम्पस सूना-सूना लग रहा है | जहां अपोजी के दौरान करने को इतना कुछ था पर कुछ भी करने का समय नहीं मिल रहा था, वहीं अब तो समय ही समय है लेकिन करने को कुछ नहीं है | खाली बैठे-बैठे सोचा कि चलो इसी के साथ अपना ब्लॉग - लेखन ही शुरू कर दूं | 4 दिन की मस्ती के बाद फिर वही बोरिंग टेस्ट सीरीज़ | अब तो पढ़ने का भी मन नहीं कर रहा | इतने दिन सीनियर्स को लूट कर अच्छा खाना खाने के बाद अब वापस मेस में खाना पड़ेगा | :P
इस अपोजी ब्रह्मोस एयरोस्पेस के एम.डी. ‘ए.एस. पिल्लई’ से मिलने का अनुभव सबसे शानदार रहा | साथ ही हम सब की, वर्ड वॉर्स पर की हुई, लगभग ढाई महीने की मेहनत भी रंग लायी | करीब 120 टीमों के पंजीकरण की तो शायद मुझे उम्मीद भी नहीं थी | हाँ, किसी भी इवेंट में न जीत पाने का मलाल तो रहेगा परन्तु सैमसंग की ओर से मिली टी-शर्ट शायद मुझे अगली बार कुछ जीतने की आशा दे रही है | वैसे शायद ये टी-शर्ट अगली होली पर ही काम आएगी | :P
अकैड्स, क्लब का काम और मस्ती बैलेंस करने के बीच कब ये आधा सेम गुज़र गया, कुछ पता ही नहीं चला | अतीत की गहराई में झांकता हूँ तो लगता है कि अभी कल ही तो मैं बिट्स में आया था और यकीन ही नहीं होता कि इतनी जल्दी मेरी इस पंचवर्षीय योजना का पहला साल खत्म होने को आ गया है | जब कॉलेज में आया था तो कोई ऐसी खास चाह नहीं थी – टेन पॉइंटर बनने की या अच्छी डुअल पाने की, चाह थी तो बस पूरे बिट्स में अपनी अलग पहचान बनाने की | बहुत कुछ नया सीखने की, करने की और अपनी कॉलेज लाइफ में पूरी तरह मस्ती करने की | और कुछ हद तक मैं इसमें सफल भी रहा | संगम नाईट की माइम हो या मेटामोरफोसिस की लघु-चलचित्र के लिए किया अभिनय, या मेरा एक पत्रकार (यद्यपि पागल पत्रकार) बन जाना, इन सभी को पूरा लुत्फ़ उठाते हुए किया | इस साल मेरे अनगिनत नामों में दो और नामों की वृद्धि भी हुई और मुझे “मुन्ना” और “स्टुअर्ट लिटिल” जैसे उपनामों से नवाजा गया ( वैसे क्या ये उपलब्धि है ?? :-) ) | साल के तीनों फेस्ट – बॉसम, ओएसिस और अपोजी में हिंदी प्रेस क्लब के साथ की हुई भरपूर मस्ती की यादें हमेशा साथ रहेंगी | अब तो बस यही आशा है कि अगले चार साल इससे भी ज़्यादा मस्ती से गुज़रें |